सब्सिडी का मीमांसा दर्शन

इसके जरिये कमजोर अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए बाहर से फ्यूल इंजेक्ट किया जाता है। यह आम आदमी की बिना मेहनत के प्राप्त धन से क्रय शक्ति बढ़ाने का उपाय है। अतिरिक्त आमदनी हुई तो आदमी बेज़ा खर्च भी करेगा। खर्च करेगा तो बाजार में मांग होगी उत्पादन बढ़ेगा। इस्लिये आज का उपभोक्तावादी दर्शन ही यह है कि सब्सिडी बांटो लोग, कारखाने और कारोबार दौड़ने लगेंगे। विकास दर दहाई का आंकड़ा छूने लगेगी और जब बजट असंतुलन दिखाने लगे, घाटा बढ़ने लगे तो सब्सिडी छिनना शुरू कर दो।

आशुतोष स्नेहसागर मिश्रा

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